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साक्षी झा के द्वारा दी गयी कुछ बहेतरीन पंक्तिया

hello dosto 

aapke liye aaj hum sakshi jha ke dwaara pesh ki gayi kuch lines lekar aaye hai 

agar aapko pasand aaye to share jarur karna and kaisi lagi woh comment karke bataana

1.

 हर्ज़ इस बात से नहीं है की वह हमसे मुँह मोड़ गए
हर्ज़ इस बात से नहीं है की वह हमसे मुँह मोड़ गए
फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता की वह किसी गैर के लिए हमें छोड़ गए
हमारा क्या है ?
कल मुसाफिर थे आज भी मुसाफिर है (2)
हर्ज़ इस बात का है, की वो माँ बाप का हवाला देकर हमको
बिच मजधार पर छोड़ गए ।

2.
उसने कहा हमारा इश्क़ मुक्कम्मल नहीं हो सकता
क्यूंकि इससे मेरे माँ बाप के दिल दुखेंगे (2)
दुनिया वाले दोहमते लगा कर उनकी इज़्ज़त को नीलाम करेंगे
हमने कहा ,
मेरी जान , मुझे भी प्यारी है मेरे माँ बाप की इज़्ज़त (2)
वरना अनाथ तो हम भी पैदा नहीं हुवे थे

निचे साक्षी झा की एक कृति पेश की गई है , अगर आपको पसंद आये तो शेयर जरूर करना

तू मंजर बेवफाई का यु सरे आम देखेगी (2)
जो शिशा सामने आया , उसे तू टोड फेकेगी
मेरी हस्ती न बिखरी थी न बिखरे है न बिखरे गी
मेरा आरम्भ देखा था तेरा अंजाम देखेगी

मुट्ठी से वक़्त  जो फिसले वो हर पल खास होता है (2)
हो दिलमे होंसला अगर तो दरिया भी पास होता है
ये मेरा इश्क़ कैसा है लगे है मुझको मृगतृष्णा(2)
वो मुझसे दूर बैठा है क्यों फिरभी पास लगता है (2)

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